रतलामी सेव से आदिवासी भीलो का 200 साल पुराना रिश्ता हे और क्या हे इससे जुड़ा मुगल इतिहास

यह तो हरकोई नाम से ही बता सकता हे कि यह रतलाम में बनी होगी इसलिए इसे रतलामी सेव कहते हे लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि असल में यह एक आदिवासी भीलो द्वारा बनाया गया व्यंजन हे जिसके लिए इसे भीलडी सेव भी कहा जाता था

रतलाम मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में पड़ता हे पहले इसे रत्नापुरी नाम से जाना जाता था जिसको राजा रतनसिंह राठौर ने ईस्वी 1652 में बसाया था जो बाद में उनके नाम से रतलाम नाम से मशहूर हे| रतनसिंह जोधपुर महाराजा उदयसिंह के पोते थे

200 साल पुराना इतिहास और मुगल रिश्ता

बात 19 वीं सदी की है, जब कुछ मुगल शाही परिवार के लोग मालवा राज्य के दौरे पर थे। इस दौरान उन्हें सेवइयां खाने की इच्छा हुई, जो गेहूं से बना करती है। लेकिन उस समय रतलाम ने गेहूं उगाया नहीं जाता था, क्योंकि यह अमीरों का खाना हुआ करता था। ऐसे में गेहूं ना होने की वजह से मुगलों ने वहां रहने वाली भील जाति के आदिवासियों को बेसन से सेवइयां बनाने को कहा और इस तरह रतलामी सेव की शुरुआत हुई और यही रतलामी सेव की पहली रेसिपी बनी

2017 में मिला जीआई टैग

देश-दुनिया में रतलामी सेव लोकप्रियता को देखते हुए साल 2017 में इसे जीआई टैग भी दिया गया। जीआई टैग एक खास तरह का लेबल होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र के व्यंजन या उत्पाद को भौगोलिक पहचान के रूप में दी जाती है

19 वीं सदी में इसका कमर्शियल उत्पादन रतलाम में चालू हो गया था, रतलाम की सखलेचा फैमिली इसकी प्रथम उत्पादक हे ऐसा माना जाता हे आज यह सेव बहुत सारे फ्लेवर में मिल रही हे

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